कड़वी यादें बीते पलों संग हीं रह जाती तो अच्छा था
वो यादें या फिर अश्कों के संग बह जाती तो अच्छा था
कुछ ख़ास नहीं हैं दूरियाँ , तेरे-मेरे दरमियाँ
बस ख़ामोशी की दीवार ये ढह जाती तो अच्छा था
नाकाम कोशिशें ख़ामोशी के सन्नाटे को और गहराती है
इन खामोशियों से बेपरवाह हीं रह जाती तो अच्छा था
मुश्किल है एहसासों को दिल में छिपाए रखना
गिले-शिकवे तुम्ही से सब कह जाती तो अच्छा था
महफ़िलों में मिले तन्हाई तो और भी खलती है
बंद अपने कमरे में अकेली हीं रह जाती तो अच्छा था
… … … आलोकिता