गुरुवार, 3 मई 2012

क्या यही प्रेम परिभाषा है ?


तुझसे लिपट  के........... तुझी में सिमट जाऊं 
भुला  के खुद को.......... तुझपे हीं मिट जाऊं 
ये कैसी तेरी चाहत ? ये कैसा है प्यार सखे ?
मिट जाए पहचान भी नहीं मुझे स्वीकार सखे 

है प्यार मुझे भी, प्रीत की हर रीत निभाउँगी
तुझसे जुडा हर रिश्ता सहर्ष हीं अपनाउंगी
पर  भुला दूँ अपने रिश्तों को मुझसे ना होगा 
एक तेरे लिए बिसरा दूँ सब मुझसे ना होगा 

बेड़ियों सा जकड़ता जा रहा हर पल मुझको 
ये कैसा प्यार जो तोड़ रहा पल पल मुझको ?
खो दूँ अपना अस्तित्व ये कैसी प्रीत कि आशा है ?
पाके तुझको खुद को खो दूँ यही प्रेम परिभाषा है ?

                                                    .......................आलोकिता