शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

एहसास

खुले आसमान में कभी विचरता बावरे बादल सा एहसास 


तन्हाई के अंधेरों में छिपकर बरसता तन्हा सा एहसास 

वक़्त तो लगता नहीं किसी भी वक़्त को गुज़र जाने में 


जिद्द करके ठहर जाता मन में नन्हे बालक सा एहसास 

अपनों में गम में नम हो हीं जाती है सबकी आँखें

बांधता रिश्ते गैरों से भी रेशम के धागे सा एहसास

सुकून देता दिल की तड़प को और हजारों सपने भी

लूट लेता रातों की नींद कभी बेवफा मनमीत सा एहसास

भुला दें एहसासों को तो जिंदगी के कोई मायने नहीं

अनचाहे भी बज उठता है दर्द भरी कोई गीत सा एहसास