बुधवार, 9 नवंबर 2011

चाँद न आता





चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती 



जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती 

यूँ तो तब भी भटकता चाँद गगन में 

पर नज़रों से उसकी मुलाक़ात न होती 

उजाला हीं उजाला रहता जो जीवन में 

मय्यसर हमें तारों की बारात न होती 

लील न जाता यदि अँधियारा सूर्य को 

तो जगमगाते जुगनुओं की ज़ात न होती 

खोये न होते जो अँधेरे सन्नाटों में कभी

अपने हीं दिल से हमारी बात न होती 

चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती 

जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों के बाद ... बहुत ही बेहतरीन.....अच्छा लगा वापसी देखकर...शुभकामनाएं....!

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  2. अँधेरा सूरत को लीलता है तभी जुगनू का एहसास होता है ... अर्थपूर्ण रचना ... सुन्दर प्रस्तुति ...

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  3. तुमसे यूँ मुलाकात न होती .... है न ?

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  4. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-694:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  5. यकीनन अपने दिल से बात करनी है तो सन्नाटा चाहिये ही
    बहुत खूबसूरत रचना

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  6. वाह बहुत ही सुन्दर रचना...
    सादर बधाई...

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