गुरुवार, 8 सितंबर 2011

मैं वहीँ मिलूंगी



परछाईं नहीं जो अँधेरे में खो जाऊं 
उमंग नहीं जो उदासी में सो जाऊं

रक्त की धारा सी  ह्रदय में रहती हूँ 
मैं अनवरत तुझमें हीं तो बहती हूँ

हूँ तुझमें हर पल भले स्वीकार न कर 
रहूंगी भी सदा भले अंगीकार न कर

अन्तःसलिला फल्गु सी बहती रहूंगी
ह्रदय से रेत हटाना मैं वहीँ मिलूंगी 

.......................................आलोकिता 

12 टिप्‍पणियां:

  1. गजब का आत्मविश्वास , सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

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  2. आत्मविश्वास से ओतप्रोत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  3. बहुत सुंदर ... आत्मविश्वास की सशक्त अभिव्यक्ति॥

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  4. स्वागत योग्य विचार, आपको साधुवाद... बहुत अच्छा लिखा है।

    yadi samay mile to dekhiyega jarur aap ki tarah direct dil tak baat pahunchti hai
    http://jan-sunwai.blogspot.com/

    acchi lekhni ko bhi sneh, anukampa chahiye.

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  5. वाह बहुत ही सुन्दर मनोभावो का चित्रण्।

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  6. आत्मविश्वास की सशक्त अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  7. गया तीर्थ में है फाल्गु नदी |
    नदी में पानी नहीं है
    पर रेत हटाओगे
    तो पानी जरुर पाओगे ||

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    बधाई |

    और बधाई ||

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  8. आदरणीय आलोकिता गुप्ता , आपने ह्रदय क़ि आवाज को पुकारा है. आत्मा क़ि धुन को जीवन में उतारा है. इसी का नाम हिंदी है. संतोष गंगेले पत्रकार छतरपुर म .प्र

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  9. गजब का आत्मविश्वास , बहुत ही सुन्दर मनोभावो का चित्रण्।

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  10. गजब का आत्मविश्वास , बहुत ही सुन्दर मनोभावो का चित्रण्।

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