शनिवार, 14 मई 2011

हर मोड़ पर



पाँव लड़खड़ाते......... हर मोड़ पर
मिलते हैं चौराहे....... हर मोड़ पर
कदम दर कदम... बढती जिन्दगी
ठिठक सी जाती है.... हर मोड़ पर
कई विकल्प......... मुँह ताकते से
खड़े रहते हैं............ हर मोड़ पर
असमंजस में डालते......... चौराहे
एक फैसला होता..... हर मोड़ पर
मिल जाते....... राहों में कई लोग
बिछड़ हीं जाता. कोई हर मोड़ पर
छुटी परछाईं.... राहों में जाने कहाँ
तन्हाई मिलती है.... हर मोड़ पर
नई आशाएं जगतीं..... कभी कभी
बिखरते हैं सपने..... हर मोड़ पर
यूँ भी जिन्दगी... कुछ आसां नहीं
कठिनाइयाँ बढती... हर मोड़ पर
बुनती नियति....... नित नई राहें
उलझती जिन्दगी.... हर मोड़ पर

14 टिप्‍पणियां:

  1. हर मोड़ पर मिल जायेंगे
    कदरदान तुझे
    बस विश्वास का दिया जलाते रहना....

    हर कोशिश में रहेगी
    उनकी मेहेरबानी
    बस प्रेम उनसे युहीं निभाते रहना ...

    मुमकिन नहीं अकेले सफ़र हो जाए आसाँ
    फ़रिश्ते आयेंगे राहों में
    उन्हें हमसफ़र बनाते रहना ..

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  2. बढ़िया है
    ऐसे लिखती रहो
    शुभाशीष

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  3. खूबसूरती से आकार लेते शब्द ,मनमोहक रचना बधाई

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  4. उलझती हुई जिन्दगी के कुछ रोचक पल

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  5. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  6. हमने भी एक खुबसुरत रचना पढ़ी इस मोड़ पर। आभार।

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है

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  8. खूबसूरत अहसास,सुंदर अभिव्यक्ति.

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  9. बहुत देर से आपकी कविताएं पढ़ रहा हूँ
    आप बहुत अच्छा लिखती है .. ये कविता बहुत अच्छी है ..


    बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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