मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

हर शख्श..... बेगाना यहाँ

हर शख्श..... बेगाना यहाँ 
हर चेहरा..... अंजाना यहाँ 

बरसो में... पहचाना जिसे 
वो भी है... अफसाना यहाँ

रास न आई.. दोस्ती मुझे 
दोस्त कोई... रहा ना यहाँ  

क्यूँ न गई.... चुपचाप वो 
छोड़  गई....  बहाना यहाँ  

न पूछना की हुआ क्या है 
आम  है बदल जाना यहाँ 

हर शख्श..... बेगाना यहाँ 
हर चेहरा..... अंजाना यहाँ 

16 टिप्‍पणियां:

  1. acchi lagi...
    par badlab jaroori hai
    agar acchai ke liye ho...




    fir milte hain...
    swayam par hi vishwas karna chahiye....

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  2. दुनिया की फितरत है। किस पर विश्वास करें समझ नही आता। अच्छी रचना है। आभार।

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  3. बस यही नेचर है इस दुनिया का .

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  4. क्यों न गयी चुपचाप वह ....... सुन्दर भाव, बहुत सुन्दर , बधाई

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  5. bahut sndar abhivyakti , shabdon ka sundar chayan kiya hai aapne . sadhuvad

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  6. समय है गुज़र जायेगा ....
    दिल है पिघल जायेगा ...
    इतनी भी उदासी ठीक नहीं ...
    दुनियां के इस मेले में -
    कोई तो अपना मिल जायेगा ..
    चेहरा फिर से खिल जायेगा ...!!!

    SUNDER RACHNA

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. सब स्वार्थी हो गए हैं ..और बेगाने लगते हैं

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  9. sab innocent rahte to kitna accha hota ...bacche acche hote hain...aur bade hokar bacchon jaisa banana bahut mushkil..par fir bhi madad karni chahiye .........

    par mere mane to zyada se zyada aatmnirbhar banana chahiye....isase bahut accha lagta hai..

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  10. आप लिखकर उसे दुबारा अवश्य पढ़ा करें.
    अंजाना जब हनुमान की माँ का नाम धारण कर लेता है तब वह हाथ में आलोचना का गदा थमा देता है.

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  11. nahi maine to sudhar kiya tha aur galati to blog editor ne ki ....isase bhav me thodi kami aayi ....haan na .....ab mita do comment....

    vashisht ji bhi thik kah rahe hain....hame aatnirbhar banana chahiye...

    aur agar gada hanuman ji ki maa ne thamai to fir to kalyan hi hoga chahe alochana ho ya prashansha....

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  12. … वो न जाने क्यूँ चला आता है,
    खयालात भी ..... बेगाने यहाँ ...

    - आलोक सिन्हा, पटना.

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