शनिवार, 12 मार्च 2011

हर बार नया एक रूप है तुझमे



हर बार नया एक रूप है तुझमे 
हर बार नयी एक चंचलता 
हर सुबह प्रेम की धूप है तुझमे 
हर साँझ  पवन सी शीतलता

हर शब्द निकलकर मुख से तेरे 
मन वीणा झंकृत कर देते 
मुस्कान बिखर कर लब पे तेरे
ह्रदय  को हर्षित कर देते 

सात सुरों  का साज़ है तुझमे 
जल तरंग सी  है मधुता 
गीतों का  हर राग है  तुझमे  
कविता सी है  मोहकता 

हर बार नया एक रूप है तुझमे 
हर बार नयी एक चंचलता 
हर सुबह प्रेम की धूप है तुझमे 
हर साँझ  पवन सी शीतलता

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर पंक्तिया
    भावपूर्ण प्रस्तुति

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. अच्छी तुकबन्दी अच्छा प्रयास इस कविता में है कुछ खास

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  4. सौंमय और सरस काफ़ी समय से ब्लोग पर आप का आना नहीं हुआ !

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  5. हर बार नया एक रूप है तुझमें.....
    अच्‍छे भावों के साथ अच्‍छी रचना।

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  6. एक जीवन के कितने रंग्\ खूबसूरत रचना के लिये बधाई।

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  7. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. हर बार तुझमे है कुछ ख़ास !
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

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