रविवार, 27 फ़रवरी 2011

कह तो दो






पलक पावढ़े ...बिछा दूंगी 
तुम आने का.. वादा तो दो 
धरा सा  धीर... मैं धारुंगी 
गगन बनोगे... कह तो दो 
पपीहे सी प्यासी. रह लूँगी 
बूंद बन बरसोगे कह तो दो 
रात रानी सी ..महक  लूँगी 
चाँदनी लाओगे कह तो दो 
धरा सा  धीर... मैं धारुंगी
गगन होने का वादा तो दो 

जीवन कागज सा कर लूँगी 
हर्फ बन लिखोगे.कह तो दो 
बूंद बन कर... बरस जाउंगी 
सीप सा धारोगे.. कह तो दो 
हर मुश्किल से ...लड़ लूँगी 
हिम्मत बनोगे.. कह तो दो 
पलक पावढ़े..... बिछा दूंगी 
तुम आने का... वादा तो दो 

चिड़ियों सी मैं... चहकुंगी 
भोर से खिलोगे. कह तो दो 
गहन निद्रा में ..सो जाउंगी 
स्वप्न बनोगे... कह तो दो 
फूलों सी काँटों में हँस लूँगी 
ओस बनोगे .....कह तो दो 
धरा सा धीर ....मैं धारुंगी 
गगन बनोगे.... कह तो दो


26 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन कागज सा कर लुंगी ....... अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई की पात्र है

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  2. बहुत सुन्दर रचना ।
    समर्पण करने का अंदाज-ए - बयां अच्छा लगा

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  5. चिड़िया सी मैं...चाह्कुंगी
    भोर से खिलोगे...कह तो दो..
    क्या खूब कहा, कोई कहे या न कहे...आप चहकते रहे, यही कामना करते हैं............:)

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  6. .

    तुम धरा धीर धारो बेशक
    बदले में ना कुछ चाह करो.
    ये धरा सहिष्णु स्वभावी
    केवल स्व-गुण प्रवाह करो.

    तुम रहो पपीहे-सी प्यासी
    बदले में ना कुछ आह करो.
    ये बहुत अधिक स्वाभिमानी
    वारिवाह की ना वाह करो.

    तुम करो स्वयं को रजनीगंध
    बदले में ना अवगाह करो.
    ये गंध देखती नहीं अमा,
    राका की अब ना राह करो.

    जीवन-कागज़ कोरा कर लो
    तो उसको जबरन नहीं भरो.
    यदि ज्ञान-बूँद की भाँति बनो
    तो एकाधिक मन शुक्ति करो.

    चिड़ियों-सा चहको मन-आँगन
    आखेटक दृग से नहीं डरो.
    यदि निद्रा में लेना सपना,
    तो भोर-नींद की चाह करो.

    .
    .
    .

    तुम पुष्प भाँति मुस्कान लिये
    जो काँटों से दुःख दाह करे.
    हम ओस बूँद की तरह रहे
    जो चाटे भी ना तृषा हरे.

    __________________
    *कहते हैं – स्वप्न प्रगाढ़ निद्रा में नहीं आते.
    **काव्य-रूढ़ी – भोर-नींद में लिये गये स्वप्न सत्य होते हैं.
    ***अवगाह - अन्तः प्रवेश करना.

    .

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  7. काँटों से दुःख = काँटों की तरह दुःख

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  8. Bahut sundar...


    हवा में घुलकर फ़ैल जाऊंगा
    अपनी खुसबू तो दो..
    ह्रदय से आँखों में चला आऊंगा.
    बस तुम आने का इशारा तो दो..
    स्वांसो में है अपना रोज आना जाना
    न ढूँढो कही, बस मुझे लबो पर आने की इजाजत तो दो..

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  10. बहुत अच्छी लगी आपकी रचना !सुंदर अभिव्यक्ति भावों की !

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  11. बहुत ही अच्छे शब्द दिये है आपने अपने दिल के भावों को। सुन्दर कविता। आभार।

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  12. समर्पण को दर्शाती बहुत ही सुन्दर रचना………॥बधाई।

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  13. वादों का वादा लेने की अच्छी सोची आपने.... पर ऐतबार न करना

    एक गजल का एक शेर है

    "अब भी दिला रहा हूं यकीने वफ़ा मगर
    मेरा न ऐतबार करो.... मैं नशे में हूं"

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  14. सुंदर .कोमल..भावाभिव्यक्ति...बहुत सुंदर...

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  15. प्रेम में समर्पण की बहुत सुन्दर रचना..

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  16. बहुत सारे ख्यालों को भाव दे कर , जोड़ कर .... एक बहुत खूबसूरत रचना की है आपने ... बहुत खूब

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  17. धरा सा धीर ही तो है इस समर्पण भाव में..
    सुनदर रचना..

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  18. निश्च्छल समर्पण की पराकाष्ठा व्यक्त करती नितांत मौलिक एवं श्रेष्ठ रचना ! मन का रोम रोम झंकृत कर गयी ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  19. bahut sunder laga ........god bless u...carry on
    bahut accha vishleshan kiya
    aur prem ka sahi arth samajhaya...

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  20. कोमल मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति

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