सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

कलम


सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल 
तू इसको निस्तेज न कर 
कलम रही सदा निश्छल 
तू इससे छल छद्म न कर 
कलम से निकली जो शब्द सरिता 
वही काव्य का रूप हुई 
उद्वेलित, स्वच्छ सी यह सरिता 
तू इसकी स्वच्छता न हर 
प्रकृति सम साहित्य के रूप अनेक 
हर रूप की सुन्दरता विशेष 
भावनाओं में सागर सी गहराइयाँ 
आशाओं में गगन सी उचाइयां 
निबंध कहीं समतल सुघड़ है 
गद्य कहीं पर्वत सा अटल है 
प्रेम में अरण्य सी सघनता 
विरह में सूने मैदान सी वीरानी 
द्वेष व्यंग के कंक्रीटों से
अनुपम  छटा बर्बाद  न कर 
कलम को कलम रहने दे 
तू इसको कृपाण न कर 
कलम चला है जब भी तो 
देश के सम्मान हेतु 
मानवता उत्थान हेतु 
निर्बलों के त्राण हेतु 
इसका गलत उपयोग न कर 
अपने स्वार्थ हेतु 
इसकी तू महानता न हर 
सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल 
तू इसको निस्तेज न कर 

11 टिप्‍पणियां:

  1. kalam badi hai pavan
    safal karti hai jivan
    sadupyog karen iska
    nirmal ho jayen sarvjan

    ....main avshya palan karunga ....shabdon aur man me samanjasya sanjone ka...:)

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  2. कलम चला देश के निर्माण हेतु। बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाई।

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  3. a lovely composition...alokita ji /
    also depicts...the power of pen/ clearly/

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  4. .

    त्रुटि सुधारें :
    १] सुने मैदान सी — सूने मैदान सी
    २] द्वेष व्यंग के कंक्रीटों से
    ३] अनुपम छटा.... न कि छठा
    .......... अच्छे उपमान गढ़े.
    .

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  5. Thanks vasisth sir chata likhne ke liye main likh likh kar pareshan ho gayi thi par chatha ho ja raha tha copy kar ke paste kar leti hun

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  6. बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना।बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  7. सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति!
    बसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ।

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  8. बहुत सुन्दर
    बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)

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