रविवार, 16 जनवरी 2011

जब सूरज उगने लगता है 
और पंछी  गाने लगते हैं
तब भोर किरण आशा बनके 
इस दिल को जगाने लगती है 
फिर सूरज चढ़ने लगता है 
कोलाहल बढ़ने लगता है 
तब आशा ही कोयल बनके 
एक मीठा गीत सुनाती है
जब सूरज सर पे होता है  
गर्मी से सबकुछ जलता है 
आशा की ठण्डी छावं तले 
एक प्यारा सपना पलता है 
फिर सूरज ढलने लगता है 
सब अन्जाना सा लगता है 
आशा हीं तब साथी बनके 
आगे का राह बताती है 
अँधियारा छाने लगता है 
और दिल घबराने लगता है 
आशा हीं  तब संबल बनके 
साहस मेरा बढाती है 
जब निंदिया रानी आती है 
सारी दुनिया सो जाती है 
आशा हीं दीपक बन के 
स्वप्न सलोने जगाती है 
जब तम गहन हो जाता है 
साया भी छोड़ के जाता है 
आशा आगे आ करके 
एक रौशनी दे के जाती है 
जब सबकुछ खोने लगते हैं 
और टूट के रोने लगते हैं 
आशा तब मुस्का करके 
सारे  आंसूं ले के जाती है 
पूछ ही दिया मैंने एक दिन
ऐ आशा तू कँहा रहती है ?
तेरे हीं मन में रहती हूँ
सांसों में तेरे बसती हूँ
तू क्यूँ घबरा जाती है 
खुद पर कर विश्वास सखी 
ये दुनिया रोक न पायेगी 
मंजिल अपनी तू पायेगी 










  

13 टिप्‍पणियां:

  1. लिखा तो बहुत बढ़िया है!
    छंदों की मात्राएँ भी यदि गिन ली जातीं
    तो सोने में सुगंध भर जाती!
    --
    बिटिया टिप्पणी को अन्यथा मत लेना!

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  2. शास्त्री सर इसमें अन्यथा लेने का क्या है ? आप जैसे अनुभवी लोग अगर गलती नहीं बताएँगे तो सुधार कँहा से आएगा ? धन्यवाद आगे भी मार्गदर्शन करते रहें बिटिया समझ कर |

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  3. वाह क्या खूब लिखा है .............बहुत सुन्दर लिखती हो ..............छोटी उम्र में ही बड़ा गहरा लिखती हो.......................बहुत पसंद आई ये रचना .............ऐसे ही लिखती रहो .

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  4. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  5. sundar likhti hain aap... shashtri ji se prerna len.. aur bhi paripakwa hongi aap...

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  6. हर पंक्ति अर्थपूर्ण ...... बहुत सुंदर और प्रभावी अभिव्यक्ति......

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  7. तेरे हीं मन में रहती हूँ
    सांसों में तेरे बसती हूँ
    तू क्यूँ घबरा जाती है
    खुद पर कर विश्वास सखी
    ये दुनिया रोक न पायेगी
    मंजिल अपनी तू पायेगी...
    बहुत अच्छी लगती है सकारात्मक दृष्टिकोण की ऐसी रचनाएं...बधाई.

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  8. सुंदर सोच के साथ लिखी गयी सुंदर कविता. बहुत सारी बधाइयाँ.

    रचना

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