गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

बचा लो जान खतरे में है !!!!!

जी हाँ आज वाकई में हमारी हिंदुस्तान कि भाषा हिंदी कि जान खतरे में है, और इसे बचाना हमारे हीं हाथों में है | किताबों में पढ़ा था कि हमारी हिंदी का स्वभाव बहुत ही सरल है ये दूसरी भाषाओं के शब्द भी खुद में मिला कर उसे अपना लेती है | इस चीज़ को सिर्फ पढ़ा नहीं अपितु व्यावहारिक जीवन में भी देखा है, लेकिन अब हम इसकी सरलता का उपयोग नहीं दुरूपयोग कर रहे हैं | 
आज कल हमारी भाषा कैसी हो गयी है :-
 कैसे हो ?
 fine. तू बता everything okay ?
yaa but थोडा परेशान हूँ job को लेकर 
और ऐसी ही वार्तालाप करके हमे लगता है कि हम तो हिंदी में बात कर रहे हैं | किसी भी भाषा का ज्ञान बुरा नहीं है | मैं अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हूँ पर अंग्रेजी का जो कुप्रभाव पड़ रहा है हमारी हिंदी पर वह मुझे गलत लगता है | आज अंग्रेजी में राम बन गए हैं "रामा" बुद्ध बन गए हैं "बुद्धा" और टेम्स कि तर्ज़ पर गंगा हो गयी "गैंजेस" | अंग्रेजी माध्यम में पढने वाला कोई बच्चा अपने स्कूल में अगर गंगा कह दे तो मजाक का पात्र बन जायेगा | आज हम इतने पागल हो गए हैं अंग्रेजी के पीछे कि हिंदी का मूल्य हीं भूल गए हैं | अंग्रेजी को सफलता और विकास का पर्याय मान लिया गया है | क्या अंग्रेजी के बिना सफलता के मार्ग पर नहीं चला जा सकता ? वैसे तो बहुत से उदहारण हैं पर ज्यादा दूर जाने कि जरुरत नहीं हमारा पडोसी चीन क्या उसने अपनी भाषा छोड़ी ?नहीं | क्या वो हमसे पीछे रह गया ? नहीं | 
अंग्रेजी का इस्तेमाल हम मशीनी मानव कि तरह करते हैं, जो रटा दिया गया वही बोलते हैं, बिना किसी अहसास के | मगर हिंदी से हमारे अहसास जुड़े होते हैं | फ़र्ज़ कीजिये किसे ने हाल चाल पूछा तो हम कैसे भी हों कह देते हैं fine , लेकिन इसी बात को हम हिंदी में नहीं कह सकते कि बहुत बढ़िया हूँ | बहुत हुआ तो हम कह देंगे ठीक हूँ | कोई अन्जान भी मिले तो उससे बात करते हुए हम कह देतें हैं dear बिना ऐसा कुछ महसूस किये कि सामने वाला हमारे लिए dear है | पर क्या हिंदी में हम हर किसी को प्रिये कहते हैं ? नहीं , क्यूंकि ऐसा हम महसूस नहीं करते |    
तो जो भाषा हमारे अहसासों से जुड़ी हों उससे हम इतना दूर होते जा रहे हैं क्यूँ? सार्वजनिक जगहों पर हमे हिंदी का इस्तेमाल करने में शर्म आती है, ज्यादातर लोग अंग्रेजी का हीं इस्तेमाल करते हैं खुद को पढ़ा लिखा दिखाने के लिए | आज ज्यादातर युवा Chetan bhagat कि सारी पुस्तकें पढ़ चुके हैं पर हिंदी के उपन्यास के विषय में पुछो तो 'इतना टाइम किसके पास है' | इतनी दुरी क्यूँ आती जा रही है हिंदुस्तानिओं और हिंदी के बीच ? क्या इसका कोई हल है ? या यूँही दूर होते होते हिंदी और हिंदुस्तान का साथ छुट जायेगा ? क्या खतरे में पड़ी हिंदी कि जान को हम बचा पाएंगे ?
अगर हाँ तो गुजारिश है "बचा लो हिंदी कि जान खतरे में है |"              















17 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक पोस्ट. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरा मानना है कि अगर आप किसी चीज की दिल से इज्जत करते हैं तो उसे दिखाना ज़रूरी नहीं है...
    सही बात मैंने भी हिंदी की शायद ४-५ उपन्यास ही पढ़े हैं...
    कारण जो भी हो..
    खैर हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा,,,,
    इंग्लिश को मैंने बहुत करीब से जाना है, तेलुगु, बांग्ला, और टूटी फूटी तमिल भी जानता हूँ...लेकिन दिल से तो हिंदी ही जुडी है....

    जवाब देंहटाएं
  3. नया साल आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये.

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक एवं सामयिक पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  5. हम तो स्रजन करते ही जा रहे हैं जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर विचार ....हिंदी के विकास के लिए

    आपने एक वार्तालाप का जो उद्वरण दिया है इस लेख में' वैसे वार्तालापी यदि कहे की वे हिंदी में बात कर रहे तो यह बड़ी हास्यापद होगी | वस्तुत : वे हिंदी नहीं हिंगलिश भाषा का प्रयोग कर रहे है | उनसे तो बस यही प्रार्थना है कि अपनी भाषा को हिंदी बता कर हिंदी भाषा को शर्मिंदा न करे |

    वैसे भाषा का विकास तो मानवीय रिश्तो के धागे को मज़बूत करने के लिए हुआ है | भारत की एकता के लिए यह बेहद जरुरी भी है कि हिंदी का अधिकाधिक विस्तार हो |

    और जैसा कि हिंदी एक सरल भाषा है इसमें दुसरे भाषाओ के शब्द भी आसानी से समाहित हो जाते है |
    जैसे आपने भी इस लेख में बहुत शब्दों का प्रयोग किया है जो वास्तव में उर्दू है और अभी मैं भी करता आ रहा हूँ |
    परन्तु इस सम्मिश्रण में बस यही ध्यान देना है कि हिंदी का जो एक मानक है एक संस्कार है वो नष्ट न हो |

    वैसे आज दुनिया को एक " ग्लोबल विलेज " कि संज्ञा दी गई है और यह दुर्भाग्य है कि अंग्रेजी को इस विलेज की भाषा को सौभाग्य प्राप्त हुआ | सो जैसे भारत एकता के लिए हिंदी जरुरी है वैसे ही विश्व एकता के लिए भी एक भाषा की जरुरत होगी | अब देखना है उस भाषा को हम कैसे विकसित करते है | मेरे विचार से भविष्य की उस भाषा को हिंदी की ओर से कोई योगदान होगा तो वो है नम्रता,आदर " modesty,respect " |
    या हिंदी ही अन्य भाषाओं को उचित तरीके से अपने में समाहित कर वो भाषा बन जाये तो अतिउत्तम |

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या हिंदी ,हिन्दू तो नहीं होता जा रहा आलोकित
    हिन्दू और हिंदी ...कहीं दोनों खतरे में तो नहीं

    जवाब देंहटाएं
  8. sarthak post

    आप को नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
    आने बाला बर्ष आप के जीवन में नयी उमंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप परिवार सहित स्वस्थ्य रहें एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे !

    नवबर्ष की शुभ-कामनाओं सहित

    संजय कुमार चौरसिया

    जवाब देंहटाएं
  9. निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल

    जवाब देंहटाएं
  10. वर्तमान परिस्थितियों पर बहुत सार्थक और गंभीर पोस्ट ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  11. आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  12. आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  13. सार्थक अभिव्यक्ति. आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  14. हम सहयोग करने को प्रयासरत हैं
    हिंदी भाषा की महिमा अपरमपार बनी रहेगी
    वन्दे मातरम्

    जवाब देंहटाएं