बुधवार, 29 दिसंबर 2010

वो बचपन हीं भला था




ख्वाबों के टुकड़ों से ,

वो टुटा खिलौना हीं भला था |
इस हारे हुए मन से ,
खेल में हारना हीं भला था |
वक़्त कि मार से ,
वो छड़ी का डर हीं भला था |
टूटते हुए रिश्तों से ,
दोस्तों का रूठना हीं भला था |
खामोश सिसकियों से ,
रोना चिल्लाना हीं भला था |
कडवी सच्चाइयों से ,
झूठा किस्सा हीं भला था |
मन में फैले अंधेरों से ,
वो रात में डरना हीं भला था |
हर टूटे सपने से ,
भूतों का सपना हीं भला था |
निराशाओं के घेरे से ,
वो बचपन हीं भला था |

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्‍छे।
    उसने मेरी अँगुली छूकर पूछा जब अहसास
    मेरे मुख से बाहर निकली इक गहरी उच्‍छवास।

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  2. रचना के माध्‍यम से बहुत ही सुन्‍दर चित्रण किया है आपने bachpan का ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. अलोकिता जी, सच बचपन होता ही ऐसा है.... बचपन के सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता.
    रमिया काकी

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  4. internet aaj kal kharaab chal raha hai....
    isliye bahut mushkil se pahuncha hoon...
    bahut hi achhi kawita padhne ko mili...
    bachpan bahut sundar ehsaas jise hum mehsoos nahi kar paate.... apna bachpan kise yaad rehta hai....hai na ???

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  5. अरे वाह!
    आपकी कविता पढ़कर तो हम भी सोचने को बाध्य हो गये!
    --
    वाकई में बचपन का तो अपना अलग ही मजा है!

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  6. बहुत खूब लिखा है आपने, पहली बार आपके ब्लोग पर आना हुआ अच्छा लिखती हैं आप, निरन्तरता बनाये रखे ।

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  7. मुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी
    वो मेरे बचपन के दिन में चाँद पर परिया रहती थी

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  8. कविता अच्छी लगी | आप की कविता में और इस कविता में जिसका लिंक दिया है काफी समानता है मतलब सिर्फ कहने के ढंग में बचपन को याद करने के तरीके में |
    http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2010/11/mangopeople_15.html

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  9. बहुत सुंदर कविता। बहुत ही सुंदर भावाभिव्‍यक्ति।

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