शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

चिता और चिंता






चिता में जलते हैं निर्जीव ,
चिंता से जलते सजीव |




कुछ घंटो में चिता की अग्नि शांत हो जाती ,
पर चिंता की अग्नि निरंतर बढती हीं जाती |


चिंता में जलता रहता है मानव ,
चिंता उसका खून पीती बनकर दानव |


अपना लहु देकर भी हमे कुछ मिल नहीं पाता,
चिंता में सर खपा कर भी कुछ हाथ न आता |


चिंता है एक मकड़  जाल, जिसमे मानव फंसता जाता,
अवनति रूपि दलदल में वह धंसता जाता |


हास्य-विनोद हीं इस चक्रव्यूह को है तोड़ सकता ,
चिंता से दूर कर खुशियों से हमारा नाता जोड़ सकता |



हास्य-विनोद से सब अपना नाता जोड़ो,
और आज से हीं चिंता का दामन छोड़ो |


20 टिप्‍पणियां:

  1. चिंता और चिता //
    वाह /
    बड़ा ही करीने से अंतर समझाया बहन /

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  2. चिन्ता का दामन छोड दिया जी ।चिन्ता तो चिता समान है। अच्छी रचना। बधाई।

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  3. वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई

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  4. आलोकिता जी ,
    यह प्रमाण पत्र आपको खुद ही देना है कि आप के द्वारा भेजा गया आलेख आपने ही लिखा है और इस से पहले कहीं और नहीं छपा है !

    बस इतनी सी बात है ... अब जल्दी से अपना आलेख लिख कर भेज दीजिये !

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  5. Sangeeta swaroop ji
    Anupama pathak ji
    Nirmala kapila ji
    Satyam Shiwam ji
    Sanjay bhaiya
    thanks a lot bahut bahut dhanyawaad aap sab ka

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  6. बहुत सटीक अभिव्यक्ति!

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  7. हास्य विनोद मगर चिंता ने धो डाला है
    सुन्दर रचना

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  8. बहुत सुन्दर प्रेरक अभिव्यक्ति..

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  9. चिंता तो चिता का है रास्ता बतलाती
    हास्य विनोद ही चिंताको झुठलाता है

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