रविवार, 12 दिसंबर 2010

बीज से पेड़

मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया
अपना नवीन रूप देख कर इतराया
सुरज ने दी गर्मी बारिश ने प्यास बुझाया
चंदा ने अपनी चांदनी से मुझे नहलाया
मस्त हवा के झोंकों ने झुला झुलाया
प्रकृति ने सुन्दर फूलों से मुझे सजाया
तितलियों ने फूलों से रस चुराया
भंवरों ने अपना मधुर गुंजन सुनाया
इसी तरह फूलता फलता मैं बड़ा हुआ
बीज से पौधा, और अब पेड़ बन खड़ा हुआ 

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