शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

क्या मैंने गलत किया ?

मैं दुर्गा कई दिनों से एक कशमकश से जूझ रही हूँ | एक अंतर्द्वंद में पीसी जा रही हूँ |किस से कहूँ अपने दिल की हालत पर आज अगर खुद को व्यक्त न करूँ तो शायद यह अंतर्द्वंद मुझे मर हीं डाले | मैं सिर्फ यही सोच रही हूँ कि क्या मैंने गलत किया ? आज भी याद है मुझे अपना बचपन जब मैं कुछ भी कहती पापा मुझे वह खरीद कर देते थे और मैं पगली डरती थी कि कहीं दुकानदार अपनी चीज़ वापस न ले ले तब एक दिन पापा ने समझाया था कि मैंने जो चीज़ पैसे देकर खरीद दी  वह तुम्हारा हो गयी  | अब दुकानदार का उसपर कोई हक नहीं | पापा ने मेरी हर मांग पूरी की है मैंने भी उनका हर कहना माना है | मैं पापा की एकलौती संतान हूँ  इसलिए उनकी सारी आशाएं भी मुझसे हीं जुडी थी | उनका सबसे बड़ा ख्वाब  था मेरा I.A.S बनना ताकि जिन लोगों ने उन्हें बेटी का बाप होने पर ताने मारे थे और बेटों का घमंड दिखाया था उन लोगों का मुंह बंद हो सके | मैंने भी जी जान लगा दी और मेरे I.A.S बनते हीं लोगों के मुंह पर ताला भी पड़ गया | पापा फुले न समाते थे तब माँ ने याद दिलाया की मैं एक बेटी हूँ, पराया धन | पापा को भी एहसास होने लगा की जवान बेटी बाप के कंधे पर बोझ होती है और मुझ बोझ को उतारने का वक्त आ गया है | आत्मनिर्भर हो कर भी मैं एक बोझ थी | खैर मेरे लिए उपयुक वर की तलाश होने लगी | जल्द हीं यह तलाश ख़त्म हो गयी | मुझ से ३ बैच सीनियर एक I.A.S ढूंढा था मेरे पापा ने अपनी लाडो के लिए | सभी कह रहे थे लड़का हीरा है हीरा और उस हीरे की कीमत  उसके जौहरी माँ बाप ने  तय किया था २५ लाख | मैंने पापा से कहा दहेज़ .......ये गलत है पापा | उन्होंने कहा यही रीत है बेटी और फिर मेरी सारी कमाई तेरे लिए हीं तो है, तू ज्यादा सोच मत कुछ भी गलत नहीं है | माँ ने इज्जत, मान-मर्यादा बहुत कुछ समझाया जिसका सारांश था कि अपने पापा की परेशानी में परेशां होने का अब कोई हक नहीं था मुझे | पापा परेशान हो तो हो आँख बंद करके मुझे विवाह वेदी पर चढ़ जाना है  और किसी और के घर की खुशी बन कर अपने माँ बाप को भूल जाना है | इसी में मेरी भलाई और पापा की इज्जत है | अपनी भलाई का तो नहीं पता पर पापा की इज्जत के लिए मैं चुप रही |जिन्दगी भर स्वाभिमान से जीने वाले मेरे पापा को अपने भाई और न जाने किसके किसके
सामने हाथ फैलाना पड़ा | सबके मुंह पर मैंने जो ताले डाले थे वो खुल गए | तानों की झड़ी लग गयीमैं चुप रही |क्या मैंने गलत किया ?माँ को को रोता देख मैंने ठान लिया कि माँ के आँसु और पापा के अपमान सबका बदला लूँगी| उन दहेज़ लोभिओं के घर बहु नहीं काल बनकर जाऊँगी| क्या मैंने गलत किया ? आदरणीय ससुर जी को मैंने आदर नहीं दिया | पूज्य सासू माँ की मैंने पूजा नहीं की, उनकी हर ईंट का जवाब मैंने पत्थर से दिया | क्या मैंने गलत किया ? पैसे ले लेने के बाद जब २५ रु. की गुडिया पर दुकानदार का कोई हक नहीं रहता तो इस सजीव गुड्डे(मेरे पति) पर मैं उसके माँ बाप का हक कैसे रहने देती ? इसके लिए तो पापा ने २५ लाख दिए थे |ज्यादा परेशानी भी नहीं हुई क्यूंकि वो अब बच्चे नहीं थे जो उन्हें माँ की जरुरत होती, उनकी जवानी को बीवी की जरुरत थी, मेरी जरुरत थी | स्वार्थी मानव |एक माँ बाप से मैंने इकलौता बेटा छीन लिया | क्या मैंने गलत 
किया ? मैं उनसे (पति ) न डरती हूँ न दबती हूँ |पैसे का रौब वो नहीं झाड़ सकते मुझ पर क्यूंकि मैं आत्मनिर्भर हूँ |मैंने उनकी गुलामी कभी नहीं की, क्या मैंने गलत किया ?एक दिन मेरी सास ने कहा था "पराये घर की बेटी है, जाने क्या संस्कार ले कर आई है |" बहुत चुभी थी मुझे यह बात | मायेके के लिए मैं पराया धन थी और ससुराल के लिए पराये घर की बेटी | मैंने अपने सास ससुर को वृधाश्रम भेज दिया है | मैंने अपना घर पा लिया है |ये घर मेरा अपना है और मैं इस घर की अपनी | क्या मैंने गलत किया ? पापा ने जो भी कर्ज लिया था मैंने चुका दिया है | क्या मैंने गलत किया ? सब कहते हैं मैंने घर तोड़ दिया |हाँ सच है मैं अच्छी, आदर्श बहु नहीं बन पायी |माँ पापा को रुलाने वालों को अपना कर उनकी सेवा मैं नहीं कर पायी | पर क्या मैंने गलत किया ? यही सोच कर घुट रही हूँ की क्या मैंने गलत किया ?

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